Thursday, June 3, 2010

Mujhko....

गुनगुनाते हुए कभी युहीं सहला दे मुझको..
उँगलियाँ फेर कर बालों में सुला दे मुझको...
लबों से छुले लबों को मेरे..
लफ्ज़ वो अनकहे समझा दे मुझको...
गुलाबों सी, नर्गिसी सी, संदली सी महकु..
जिस्म मेरा छुके यूँ महका दे मुझको...
बस जाए तू मुझमे, और खुदको मैं तुझमे पाऊँ..
समां के मुझमे पूरा बना दे मुझको...