Tuesday, March 15, 2011

judai...

जब कभी दिल को वो यादों से रिहाई देगा...
मेरे अन्दर एक तूफ़ान सा सुने देगा...
उससे मिलते ही ये एहसास हुआ था मुझको..
यही वो शख्स है , जो लम्बी जुदाई देगा...

क्या तुम भी.

क्या तुम भी..
हर रोज़ शाम की दहलीज़ पर उम्मीद की शमा जलाते हो...
और हलकी सी आहट पर दरवाज़े की ओर भाग जाते हो...
क्या तुम भी...
दर्द छुपाने की कोशिश करते करते, अक्सर थक से जाते हो..
और तन्हाई में , भीड़ में , यूँही बेवजह मुस्काते हो...
क्या तुम भी..
नींद से पहले पलकों पर ढेरो ख्वाब सजाते हो..
और फिर...
तन्हाई की चादर ओढ़े , गुमसुम तकिये पे सो जाते हो...

उजाले

कभी तो आसमान से उतरे , वो चाँद मेरे नाम हो जाए..
तेरे प्यार से छलकता हर एक जाम हो जाए...
उजाले अपनी यादों के मेरे पास रहने दो...
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए...

क्या तुम भी

क्या तुम भी आसमा में तारों पे नज़रे गढ़ाते हो...?
और फिर एक तनहा तारे को देखकर मुस्कुराते हो..
क्या तुम भी अनजानों में अपने तलाशते हो?
और फिर अपनों को भी अनजाना सा पाते हो...
क्या तुम भी एक महाकेसे ख़याल से टकराते हो..?
उसके तस्सवुर को ना पाकर मायूस से हो जाते हो..?
क्या तुम भी कुछ गुनगुनाते हो..?
आईने को देखके इतराते हो..
कभी होगा मेरा हमखयाल भी...
क्या तुम भी यही सपना सजाते हो...?
क्या तुम भी....