Tuesday, September 24, 2013

ख़ुमार..

सिलवटों पे लिखी,करवटें इक हज़ार..
धीमी आँच पे जैसे, घुलता रहे मल्हार..
मूंदी आँखो मे महका सा , बीती रात का ख़ुमार..
हसरातों ने किया रुकसातों से किया करार..
थामे आँचल तेरा , करती है इंतज़ार ...
मुद्दतो सा चले हर इक लम्हा
आहटो ने किया है जीना भी दुश्वार ..
मूंदी आँखो मे महका सा , बीती रात का ख़ुमार..

Monday, September 23, 2013

Khuda..


तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ? 
कहीं ज़ख्म, तो कहीं पीठ मे खंजर क्यों है ? 
सुना है की तू हर ज़र्रे में रहता है , 
तो फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद क्यों है ? 
जब लिखता है सब तू ही , तेरे ही है सब बंदे .. 
तो लिखी इनके दिलो मे इतनी नफ़रत क्यों है ? 
एक ही है तू , जो सबमे बसता है .. 
तो ये हज़ार चेहरे.. और लाख लकीरे क्यूँ है ?  
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ? 

तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ? 
कहीं ज़ख्म, तो कहीं पीठ मे खंजर क्यों है ? 
सुना है की तू हर ज़र्रे में रहता है , 
तो फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद क्यों है ? 
जब लिखता है सब तू ही , तेरे ही है सब बंदे .. 
तो लिखी इनके दिलो मे इतनी नफ़रत क्यों है ? 
एक ही है तू , जो सबमे बसता है .. 
तो ये हज़ार चेहरे.. और लाख लकीरे क्यूँ है ?  
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ?