Friday, April 1, 2011

To SACHIN... From Rakhi ..

उडा धुल सारी चलो खेलते है..
सफा करके शीशे चलो खेलते है..
उम्मीदों का मौसम है, बहारो का आलम
दिलों में भरके जोश चलो खेलते है...
हथेली हथेली दुआ खिल रही है..
गलियों गलियों धूम मच रही है..
बादलों पे चढ़के चाँद तोड़ने,
बुलंद करके हौसले चलो खेलते है.....
बहोत सब्र है , बहोत शोर है..
हज़ारों इम्तिहानो के बाद आया ये दौर है...
हसरतों से मिलने, सपनो को चूमने
जुनून भरके खुदमे चलो खेलते है...
एक ही ख्वाहिश है, एक ही आरज़ू
करोडों दिलों में धड़कती बस एक ही जुस्त जू ...
अब खुदा से मांगने , जिंदगी का तोहफा...
बांध के सर पे कफ़न चलो खेलते है....

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