अब के बहार आई है मेरी गली में,
मैं समझी,,, के आप यहाँ आए थे शायद.....
हज़ारों फूल खिल उठे है इन विरान राहों पर,
मैं समझी,,, आप ही की ये मुस्कराहट है शायद....
जी उठे है हर एहसास इस तनहा सी बस्ती के,
मैं समझी,,, आप ने इन्हें छुआ था शायद...
इस विराने में इतनी रोशनी है के माहताब भी नज़रे चुराए,
मैं समझी,,, आपने इन्हें नज़र उठा के देखा था शायद....
फिर मैंने सोचा,
के क्या ये मुमकिन है के आप इस गली में हो और मैं बेखबर रहूँ ?
आँख खुलते ही ये यकीन हुआ...
के मैंने य इ एक हसीं ख्वाब देखा था शायद...
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