Monday, May 31, 2010

रुक जाओ....

रुक जाओ के इस दिल में एक कसक अभी बाकी है..
नशा वो पहली नज़र का,
वो असर अभी बाकी है...
न अब वो हसी महफ़िल है , न मौसम है बहारों का,
पर एहसास उस रात की मुलाकात का ,
वही जस्बात अभी बाकी है...
महसूस तुम ना कर सके ये दर्द-ओ-ग़म, ये तडपना जिसका,
एक अरमां उसी टूटे दिल का,
के एक हसरत अभी बाकी है...
मजबूर ये हालात है और बेबसी मेरी निगाहों में,
वही बेरुखी, वही सिलवट तेरी आवाज़ में ,
और वही चुभन अभी बाकी है...
पैग़ाम दे रही है ये नज़रे तेरी बेवफाई का,
मिल चुका है हर जवाब,
पर फिर भी, एक सवाल अभी बाकी है...
रुक जाओ के इस दिल में एक कसक अभी बाकी है...


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