Tuesday, September 24, 2013

ख़ुमार..

सिलवटों पे लिखी,करवटें इक हज़ार..
धीमी आँच पे जैसे, घुलता रहे मल्हार..
मूंदी आँखो मे महका सा , बीती रात का ख़ुमार..
हसरातों ने किया रुकसातों से किया करार..
थामे आँचल तेरा , करती है इंतज़ार ...
मुद्दतो सा चले हर इक लम्हा
आहटो ने किया है जीना भी दुश्वार ..
मूंदी आँखो मे महका सा , बीती रात का ख़ुमार..

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