तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ?
कहीं ज़ख्म, तो कहीं पीठ मे खंजर क्यों है ?
सुना है की तू हर ज़र्रे में रहता है ,
तो फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद क्यों है ?
जब लिखता है सब तू ही , तेरे ही है सब बंदे ..
तो लिखी इनके दिलो मे इतनी नफ़रत क्यों है ?
एक ही है तू , जो सबमे बसता है ..
तो ये हज़ार चेहरे.. और लाख लकीरे क्यूँ है ?
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ?
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