Monday, September 23, 2013

Khuda..


तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ? 
कहीं ज़ख्म, तो कहीं पीठ मे खंजर क्यों है ? 
सुना है की तू हर ज़र्रे में रहता है , 
तो फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद क्यों है ? 
जब लिखता है सब तू ही , तेरे ही है सब बंदे .. 
तो लिखी इनके दिलो मे इतनी नफ़रत क्यों है ? 
एक ही है तू , जो सबमे बसता है .. 
तो ये हज़ार चेहरे.. और लाख लकीरे क्यूँ है ?  
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है ? 

3 comments:

  1. big fan of your writing....this is as superb, like other of this wonderful valuable collection.... truly an artist u r...nice :)

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  2. my pleasure to have mature people like u around :) thank you a ton :)

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